Monday, December 5, 2011
मेरी शायरी
दिल तो अभी बच्चा है इसको बच्चा ही रहने दो ....
क्योकि दूर रहना चाहता हूँ मैं दुनिया के झमेलों से .....
कहते है इश्क इंसान कि जरूरत होती है ....
हमे तो इश्क हो गया है फेसबुक के दोस्तों से .......
मेरा दिल भी आवारा हो गया है आजकल .....
भटकता रहता है एक दिलबर कि तलाश में .......
तुम्हारे क़दमों को चूमती है तुम्हारी मजिलें ....
और हम तुम्हारे क़दमों के निशान देखने को तरसते रहे .........
एक दिन तो अलविदा कह जाना है सबको इस दुनिया के मायाजाल से ....
फिर भी हम आज़ाद नहीं हो पाते है दुनिया के फैले हुए भ्रमजाल से .......
बीवी कि गुलामी करने को हम तो तैयार है ......
और हँसते हुए अपना बैंड बजवाने को हम तैयार है ......
हाहाहा .....
तुम्हारे क़दमों को चूमती है तुम्हारी मजिलें ....
और हम तुम्हारे क़दमों के निशान को न पा सके ........
सपनो कि दुनिया मैं आ गया हूँ मैं ..
हकीकत के आईने से बाहर आ गया हूँ मैं .....
कभी कभी बन जाते है अजनबियों से कुछ ऐसे रिश्ते ....
अपने दे जाय दगा तो क्या खुदा भेज देता है अजनबी फरिश्ते ......
मेरी शायरी
फासले पे रखो अपना विश्वास क्योकि किसी से टकराने पर हादसों से जिंदगी घिर जाती है .
कहते है दूरी होने पर ही किसी इंसान कि असलियत समझ में आती है .......
मेरे जेहन में तो हमेशा ही उनका ख्याल आया .....
छोड गए वो हमको तनहा बस यही एक अकाल आया .......
अब तो रूह में बस चुकी है तन्हाई इस कदर .....
जैसे बरसों से रूह को तलाश थी इसकी दर-बदर ....
तन्हाई का दौर कुछ ऐसा चला है आजकल .....
कि यादें भी कर जाती है हमे तनहा आजकल .......
बात ये सच है कि सब के हिस्से में सब कुछ नहीं आता ....
खुशनसीब हूँ मैं मेरे हिस्से में तेरी यादों का कारवां आया .....
मुझको तडपता देखकर खुश तो बहुत होती है वो ......
कोई गैर नहीं है वो मेरी अपनी ही तन्हाई है वो .........
जब भी रात नज़दीक आती है मेरे दिलबर कि याद भी साथ लाती है ......
तन्हाई कि चादर उड़ा के मुझको नींद के आगोश में ले जाती है .......
जब भी रात नज़दीक आती है मेरे दिलबर कि याद भी साथ लाती है ......
तनहाइयों कि चादर उड़ा के मुझको नींद के आगोश में ले जाती है .......
जब भी रात नज़दीक आती है मेरे दिलबर कि याद भी साथ लाती है ......
तनहाइयों कि चादर उड़ा के मुझको नींद के आगोश में कर जाती है .......
हमे बस एक ख्याल है उनका जेहन में बस एक सवाल है उनका ...
कटती नहीं रातें अब करवटें बदलते बस एक इन्तेज़ार है उनका.......
घर से मंदिर है बहुत दूर........
चलो ऐसा करे किसी रोते हुए को हँसाया जाए........
अश्क बह कर भी कम नहीं होते दोस्त,
यह आँखे कितनी अमीर होती है....
Friday, December 2, 2011
मेरी शायरी
एक अहसास है तेरा एक ख्वाब है तेरा ....
जिंदगी कुछ भी नहीं बस एक शब्-ए - इन्तेज़ार है तेरा ....
सुबह हो या शाम क्यूँ याद तुम्हारी आती है......
ना काम में लगता है दिल न ही रातों को मुझे नींद आती है.......
चेहरे पर हंसी हमारे आती नहीं ....
उसके बिना जिंदगी हमको भाति नहीं .....
मेरी रूह को न जाने किसकी तलाश है ....
लगता है एक हमसफ़र की आस है ......
एक अहसास है तेरा एक ख्वाब है तेरा ....
जिंदगी कुछ भी नहीं बस एक इन्तेज़ार है तेरा ....
ढूँढता हूं मै दर बदर मंजर मेरे शबाब के......
चुनता हूं मै बागों से रंग नन्हें गुलाब के........
चलता हूं मै दिन भर नशे मे उस शराब के.......
सोता हूं मै रातों को आस मे एक ख्वाब के........
तुम्हारी फितरत कि आम तुम कभी बन नहीं सकते.......
हमारा उसूल कि किसी खास के दर पर हम नहीं जाते........
जब से बसा लिया मन, सांवरिया तेरी गली में .....
पी लिया अमृत मैने, तेरी बांसुरी की धुन में .......
तोड़ दिए है मैने सारे नाते, इस बैरी जग के .......
अब आ जाओ मनमोहन, मेरे मन मंदिर में......
करना है कुछ बड़ा तो कुछ हट के सोचिये ........
क्या कहेगा कोई हमें , बस यह न सोचिये........
न तुम ही तुम हो दुनिया में,
न हम ही हम हैं इस दुनिया में
हमीं हैं इसलिए तुम हो
हो तुम भी इसलिए हम हैं
नई बहू से इतनी तबदीली आई......
भाई का भाई से रिश्ता टूट गया.....
औरत को प्यार और सम्मान देकर देखिये ...
खुद बा खुद समझ जायेगे कि देवी किसे कहते है .......
सबका मालिक एक है ....
पायेगा वो उसको जिसकी नीयत नेक है .....
कांटे रिश्तों को कभी आजमाते नहीं ....
ये फूलों की तरह कभी मुरझाते नहीं ......
बहुत तेज जिंदगी में जब वक्त मिले तो सोचिये ....
की हम भागते तो रहे पर पाया क्या हमने .......
तेरी आँखों को जब देखा ,कमल कहने को जी चाहा ......
मैं शायर तो नहीं लेकिन गज़ल कहने को जी चाहा ......
कोई कहता है दीवाना मुझको कोई कहता पागल है ....
किसी को क्या पता की मेरी रूह तेरे इश्क में घायल है ........
जिंदगी को सँवारने के लिए आ जाओं मेरे हमदम ....
तेरे आने से अपनी मंजिल को पा ही लेगे मेरे कदम ......
कोई कहता है दीवाना मुझको कोई कहता पागल है ....
किसी को क्या पता की मेरी रूह इश्क में घायल है ......
कोई कहता है दीवाना मुझको कोई कहता पागल है ....
सबको को क्या पता की मेरी रूह इश्क में घायल है ......
रात ढल रही है और चाँद है तनहा ....
चाँद भी गुफ्तुगू कर ले सितारों से......
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