हम पहुच गए अपनी मंजिल तक .....
क़दमों के निशां उनके ढूँढ़ते ढूँढ़ते .....
मैं एक फ़कीर सी जिंदगी बसर करने में खुश हूँ ....
मुझे बस अब कुछ नहीं चाहिए तेरे दीदार के बाद.......
रात ने जुल्फें खोल रखी हैं और हवा सहलाती है.
चंदा के दर्पण में तक तक रूप स्वयं शर्माती है.
जिंदगी का नशा इतना बुरा भी नहीं है .....
जो मौत को हम अपनी माशूका बनाये....
मौत भी आकर मेरे पास शरमाकर चली गयी .....
क्योकि जिंदगी का नशा अभी बाकी था मेरी रगों में ......
उनके लिये जमाने भर से घाव अपने दिल पर लेते रहे,
अपने मसले हल होते ही मुंह वह फेर गये
यह भी नहीं पूछा कि
मेरे लिये तुमने कितना दर्द सहा..............
धोखे खाये है हमने हजार जमाने से......
थक गये इंसानों को अब आजमाने से ......
अपने जज्बातों को हमने यूँ दबा रखा है ......
जैसे फर्श पर धुल ने अपना कब्जा जमा रखा है .........
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