Monday, November 21, 2011

मेरी शायरी

किसी इंसान का भरोसा करना तो आसान है ....
मगर इंसान की सोच का भरोसा मुमकिन नहीं ......
सरहदों ने बाँट रखा है इस दुनिया को ....
सोच की कभी कोई सरहद नहीं होती .......
इंसान लाख पहरा लगा ले इंसानों पर .....
सोच पर किसी के कोई पहरा लगा सकता नहीं ........
एक पंडित ने मुझसे कहा है की जब तक तुम्हारी जिंदगी में पत्नी के पैर नहीं पड़ेगे तब तक तुम उन्नति नहीं कर पाओगे ....

तुम्हारे क़दमों की आहट सुनता हूँ रोज अपने ख्वाबों में ...
कभी हकीकत में भी दे जाओं अपने क़दमों के निशाँ मेरे आशियाने में....
दोस्तों ,,,
शायरी करना अब तो मेरा जूनून बन गया है ....
दिल के अरमानो का अब तो ये सुकून बन गया है ........
प्यार किया था कभी हमने उसको दिलोजान से ....
आज तक ढूँढ रहे है उसका पता पूरे अरमान से .....
वक्त ना जाने नित्य नए कितने रूप दिखाता है ....
दगा देने वाले अपने को गैर और गैर को अपना बनाता है ....
"ये खामोश मिज़ाजी , तुम्हें जीने नहीं देगी
इस दौर में जीना है , तो कोहराम मचा दो "
हर किसी के पास जिंदगी जीने का पयाम नहीं आता ....
जिंदगी तो वो राज़ है जो शब्दों से ब्यान नहीं होता .......
 
 
 
 
 
 
 
 
 

1 comment:

  1. शायरी करना तो अब मेरा जूनून बन गया है.....................वाह ! बहुत खूब आशीष भाई, आपका यह जूनून बहुत हद तक सकारात्मक एवं रचनात्मक है, भावपूर्ण एवं यथार्थपूर्ण है......आपको आपका यही जूनून एक दिन मुकाम तक पहुंचाएगा. हौसला बनाए रखें और लिखते रहे और मेरी एक बात हमेशा याद रखें की-- "सच्चा लेखक कभी निजी-महत्वकांक्षा एवं निजी-स्वार्थ से प्रेरित होकर नहीं लिखता बल्कि वो लिखता है अपने भावनाओं को शब्दों से बयान करने के लिए, अपने संतुष्टि के लिए." कई बार ऐसा भी वक्त आएगा जब कोई आपके लेखन की आलोचना कर देगा. लेकिन हमेशा याद रखें की वो आलोचना आपके शब्दों के चयन की हो सकती है, शैली की हो सकती है, भाषा की हो सकती है लेकिन कदापि वह आपके भावुकता की आलोचना नहीं कही जा सकती. शब्दों में व्याकरण और वर्तनी की अशुद्धियाँ निर्धारित की जा सकती हैं, किसी की भावना किसी भी व्याकरण की मोहताज नहीं होती.

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