Monday, December 5, 2011
मेरी शायरी
दिल तो अभी बच्चा है इसको बच्चा ही रहने दो ....
क्योकि दूर रहना चाहता हूँ मैं दुनिया के झमेलों से .....
कहते है इश्क इंसान कि जरूरत होती है ....
हमे तो इश्क हो गया है फेसबुक के दोस्तों से .......
मेरा दिल भी आवारा हो गया है आजकल .....
भटकता रहता है एक दिलबर कि तलाश में .......
तुम्हारे क़दमों को चूमती है तुम्हारी मजिलें ....
और हम तुम्हारे क़दमों के निशान देखने को तरसते रहे .........
एक दिन तो अलविदा कह जाना है सबको इस दुनिया के मायाजाल से ....
फिर भी हम आज़ाद नहीं हो पाते है दुनिया के फैले हुए भ्रमजाल से .......
बीवी कि गुलामी करने को हम तो तैयार है ......
और हँसते हुए अपना बैंड बजवाने को हम तैयार है ......
हाहाहा .....
तुम्हारे क़दमों को चूमती है तुम्हारी मजिलें ....
और हम तुम्हारे क़दमों के निशान को न पा सके ........
सपनो कि दुनिया मैं आ गया हूँ मैं ..
हकीकत के आईने से बाहर आ गया हूँ मैं .....
कभी कभी बन जाते है अजनबियों से कुछ ऐसे रिश्ते ....
अपने दे जाय दगा तो क्या खुदा भेज देता है अजनबी फरिश्ते ......
मेरी शायरी
फासले पे रखो अपना विश्वास क्योकि किसी से टकराने पर हादसों से जिंदगी घिर जाती है .
कहते है दूरी होने पर ही किसी इंसान कि असलियत समझ में आती है .......
मेरे जेहन में तो हमेशा ही उनका ख्याल आया .....
छोड गए वो हमको तनहा बस यही एक अकाल आया .......
अब तो रूह में बस चुकी है तन्हाई इस कदर .....
जैसे बरसों से रूह को तलाश थी इसकी दर-बदर ....
तन्हाई का दौर कुछ ऐसा चला है आजकल .....
कि यादें भी कर जाती है हमे तनहा आजकल .......
बात ये सच है कि सब के हिस्से में सब कुछ नहीं आता ....
खुशनसीब हूँ मैं मेरे हिस्से में तेरी यादों का कारवां आया .....
मुझको तडपता देखकर खुश तो बहुत होती है वो ......
कोई गैर नहीं है वो मेरी अपनी ही तन्हाई है वो .........
जब भी रात नज़दीक आती है मेरे दिलबर कि याद भी साथ लाती है ......
तन्हाई कि चादर उड़ा के मुझको नींद के आगोश में ले जाती है .......
जब भी रात नज़दीक आती है मेरे दिलबर कि याद भी साथ लाती है ......
तनहाइयों कि चादर उड़ा के मुझको नींद के आगोश में ले जाती है .......
जब भी रात नज़दीक आती है मेरे दिलबर कि याद भी साथ लाती है ......
तनहाइयों कि चादर उड़ा के मुझको नींद के आगोश में कर जाती है .......
हमे बस एक ख्याल है उनका जेहन में बस एक सवाल है उनका ...
कटती नहीं रातें अब करवटें बदलते बस एक इन्तेज़ार है उनका.......
घर से मंदिर है बहुत दूर........
चलो ऐसा करे किसी रोते हुए को हँसाया जाए........
अश्क बह कर भी कम नहीं होते दोस्त,
यह आँखे कितनी अमीर होती है....
Friday, December 2, 2011
मेरी शायरी
एक अहसास है तेरा एक ख्वाब है तेरा ....
जिंदगी कुछ भी नहीं बस एक शब्-ए - इन्तेज़ार है तेरा ....
सुबह हो या शाम क्यूँ याद तुम्हारी आती है......
ना काम में लगता है दिल न ही रातों को मुझे नींद आती है.......
चेहरे पर हंसी हमारे आती नहीं ....
उसके बिना जिंदगी हमको भाति नहीं .....
मेरी रूह को न जाने किसकी तलाश है ....
लगता है एक हमसफ़र की आस है ......
एक अहसास है तेरा एक ख्वाब है तेरा ....
जिंदगी कुछ भी नहीं बस एक इन्तेज़ार है तेरा ....
ढूँढता हूं मै दर बदर मंजर मेरे शबाब के......
चुनता हूं मै बागों से रंग नन्हें गुलाब के........
चलता हूं मै दिन भर नशे मे उस शराब के.......
सोता हूं मै रातों को आस मे एक ख्वाब के........
तुम्हारी फितरत कि आम तुम कभी बन नहीं सकते.......
हमारा उसूल कि किसी खास के दर पर हम नहीं जाते........
जब से बसा लिया मन, सांवरिया तेरी गली में .....
पी लिया अमृत मैने, तेरी बांसुरी की धुन में .......
तोड़ दिए है मैने सारे नाते, इस बैरी जग के .......
अब आ जाओ मनमोहन, मेरे मन मंदिर में......
करना है कुछ बड़ा तो कुछ हट के सोचिये ........
क्या कहेगा कोई हमें , बस यह न सोचिये........
न तुम ही तुम हो दुनिया में,
न हम ही हम हैं इस दुनिया में
हमीं हैं इसलिए तुम हो
हो तुम भी इसलिए हम हैं
नई बहू से इतनी तबदीली आई......
भाई का भाई से रिश्ता टूट गया.....
औरत को प्यार और सम्मान देकर देखिये ...
खुद बा खुद समझ जायेगे कि देवी किसे कहते है .......
सबका मालिक एक है ....
पायेगा वो उसको जिसकी नीयत नेक है .....
कांटे रिश्तों को कभी आजमाते नहीं ....
ये फूलों की तरह कभी मुरझाते नहीं ......
बहुत तेज जिंदगी में जब वक्त मिले तो सोचिये ....
की हम भागते तो रहे पर पाया क्या हमने .......
तेरी आँखों को जब देखा ,कमल कहने को जी चाहा ......
मैं शायर तो नहीं लेकिन गज़ल कहने को जी चाहा ......
कोई कहता है दीवाना मुझको कोई कहता पागल है ....
किसी को क्या पता की मेरी रूह तेरे इश्क में घायल है ........
जिंदगी को सँवारने के लिए आ जाओं मेरे हमदम ....
तेरे आने से अपनी मंजिल को पा ही लेगे मेरे कदम ......
कोई कहता है दीवाना मुझको कोई कहता पागल है ....
किसी को क्या पता की मेरी रूह इश्क में घायल है ......
कोई कहता है दीवाना मुझको कोई कहता पागल है ....
सबको को क्या पता की मेरी रूह इश्क में घायल है ......
रात ढल रही है और चाँद है तनहा ....
चाँद भी गुफ्तुगू कर ले सितारों से......
Monday, November 28, 2011
मेरी शायरी
न जाने ये कैसी ख़ामोशी छाई है ....
इस बार बहुत तनहा सर्दी आई है ......
दिन भर जी लगा के काम किया ....
और रात भर जम के आराम किया .....
ठिठुरती रात में करवटें बदल रहा हूँ ....
मैं तेरे इश्क में यूँ तनहा जल रहा हूँ ......
चांदनी रात में जब भी एक सवाल आया ....
मेरे जेहन में बस एक तेरा ख्याल आया ....
वो तो एक हसीं अप्सरा थी जो आकर चली गयी ....
भूल जाना ही बेहतर है उसको वो अपनी राह पर चली गयी ......
सारा पानी होठों से छूकर गुलाबी कर गया ....
वो नदी की मछलियों को भी शराबी कर गया ......
उसकी झील सी गहरी आँखों में डूबता चला गया .....
उसकी रेशमी जुल्फों कि घटाओं में बहता चला गया .....
उसके गुलाबी होठों कि लाली में खोता चला गया .......
सबको मालूम है मेरा दिल इश्क का बीमार है ....
फिर भी करता नहीं कोई मेरे दिल का उपचार है .....
मुझे रात दिन अब तेरा इन्तेज़ार है .....
ये दिल मेरा अब तेरा तलबगार है .......
अब तो उम्र भ बीत जाये तो कोई गम नहीं ....
अब तो खुदा भी रूठ जाये तो कोई गम नहीं .....
उसकी मोहब्बत का कुछ ऐसा नशा है यारों ....
अब तो क़यामत भी आ जाये तो कोई गम नहीं ......
संसार को सुधारेगे औरों के पोल उतारेगे ......
पर हम नहीं सुधेरेगे कभी हम नहीं सुधरेगे .......
मुझसे चाहे कोई प्यार करे या न करे....
खुद से प्यार करना सीख चूका हूँ मैं ......
मुझको तो बड़ी अज़ीज़ है ये शायरी ......
खुदा का दिया हुआ सबसे हसीं तोहफा है शायरी ......
तेरे जाने के बाद जिंदगी में एक कसक सी रह गयी .....
जैसे चंद रेजगारी के सिक्कों कि खनक सी रह गयी .......
मेरे दिल के टुकड़े हज़ार कर के देख लो ....
तेरा ही अक्स निकलेगा हर टुकड़े से .......
फेसबुक कि खुमारी कुछ ऐसी चडी है .......
कि मेरे पीछे मम्मी छड़ी लेकर खड़ी है ........
मोहब्बत कि गुजारिश हो रही है ....
तुम्हे पाने कि आजमाइश हो रही है .......
सुबह से आँख में नमी सी है ....
जैसे जिंदगी में किसी कि कमी सी है ......
औरत ही स्वर्ग का द्वार है .......
औरत के पैरों में सारा संसार है ......
जीवन में नहीं है कोई मेरे तरक्की ....
क्योकि जीवन में नहीं है कोई मेरे लड़की ........
तू कहेगी तो तेरे क़दमों में मैं झुक जाऊँगा ....
और अपने दिल कि रानी तुझे बनाऊंगा......
तू कहेगी तो तेरे क़दमों में मैं झुक जाऊँगा ....
लेकिन एक दिन अपने दिल कि दीवानी तुझे बनाऊंगा
मेरी सोच कब कहाँ और किस ओर जायेगी .....
एक न एक दिन वो अपना पता जरूर पाएगी ......
मेरी सोच कब कहाँ और किस कि ओर जायेगी .....
एक न एक दिन वो अपना पता जरूर पाएगी ......
मुझसे हिसाब कोई क्या लेगा ....
जो कुछ भी लेगा वो खुदा लेगा ......
अपने होठों से चूम लो गर तुम गुलाब को .......
कांटे भी तरसेगे तेरे हुस्न -ए- शबाब को ........
अपने होठों से चूम लो गर तुम गुलाब को .......
कांटे भी तरसेगे तुम्हारे हुस्न के शबाब को ........
खुद कि पहचान को देखो रूह के आईने में आशीष ......
दुनिया कि नज़रों में तुम्हारी पहचान कुछ भी नहीं .......
खुद कि पहचान को देखो रूह के आईने में ......
दुनिया कि नज़रों में तुम्हारी पहचान कुछ भी नहीं ........
एक सवाल के कई जवाब देता है वो ....
न जाने कितने लोगो को दगा देता है वो .......
एक सवाल के दस जवाब देता है वो ....
न जाने कितने लोगो को दगा देता है वो .......
यूँही एक ख्याल आया और मन में एक सवाल आया उनका ....
न जाने क्यों मेरे इस दिल में .इश्क का अकाल आया उनका .....
मुझको नहीं थी खबर कि इन्तेज़ार में है कोई और मेरे
मैं तो तन्हाई को अपना दोस्त समझ बैठा था .......
यूँ तो जिंदगी में रोज लोग आते है जाते है .....
पर आप जैसे दोस्त बहुत कम ही मिल पाते है ........
आपके इश्क ने क्या कमाल कर दिया .....
मेरे तनहा दिल को मालामाल कर दिया ......
तुमसे नज़र मिलने के बाद नज़ारे हम क्या देखे .....
तुमसे मोहब्बत करने के बाद चाँद सितारे हम क्या देखे ....
तुमने पिला दिया है अपने होठों से वो जाम साकी ...
कि इस नशे के बाद दूसरा जाम हम क्या देखे .......
Friday, November 25, 2011
मेरी शायरी
तुमसे नज़र मिलने के बाद नज़ारे हम क्या देखे .....
तुमसे मोहब्बत करने के बाद चाँद सितारे हम क्या देखे ....
तुमने पिला दिया है अपने होठों से वो जाम साकी ...
कि इस नशे के बाद दूसरा जाम हम क्या देखे .......
आज एक जान-ए -बहार की कमी सी लगती है मुझको .......
उसके ना होने से महफ़िल नागवार सी लगती है मुझको ....
उसको देखने के बाद ही कुछ सुरूर आएगा इस दिल को .
नहीं तो ये जिंदगी एक खाली किताब सी लगती है मुझको
कभी पड़ना हो मेरे जीवन की किताब को करीब से ....
आ जाना मेरे पास क्योकि हम मिलेगे बड़े नसीब से....
नेताओं से इतना कहना चाहूगा ....
साथ में गुज़ार के देखो एक आम आदमी की जिंदगी ....
कैसे अपना पेट काट काट के वो अपनी जिंदगी बसर करता है .....
गरीब की आहों की गूँज तो दबा दी जाती है यारों ...
देखो चांटे की गूँज पहुच जाती है आलाकमानो तक ......
एक दिन वो क्रांति आएगी हिंद की ज़मीन में .....
भ्रष्ट नेताओ तुमको नहीं मिलेगा दफ़न इस ज़मीन में ......
आज की रात फिर से तनहा कर गयी हमको .....
और ख्वाबों की सौगात देकर अपने से जुदा कर गयी हमको.......
फेसबुक के लिए दो शब्द .....
तेरे लोगिन में ऐसा जादू है .....जाना होता है और कही ...
पोस्ट करने तेरी ओर खीचा चला आता हूँ ....
फेसबुक ने हमको निकम्मा कर दिया आशीष .....
नहीं तो आदमी हम बहुत काम के थे ......
तुझे देखे जमाना हो गया .....
मस्ताने से तेरा दीवाना हो गया .....
पल-पल तेरी याद में ....
दर-दर भटकने वाला बेगाना हो गया .......
खुश है जमाना तेरे दीदार से, क्यूँ तू छिपा रही है अपने हुश्न को.......
दुआयें देंगे तुझको, ज़माने कि नज़रों से गुजरने दे, अपने हुश्न को.......
कुछ भी हो जाये अपने अंदर अहंकार की भावना कभी ना लाना ....
दूसरों से हो जाये गलतियाँ तो प्रतिकार की भावना कभी ना लाना .....
तुझे देखने के बाद तो अब क़यामत से भी डर नहीं लगता....
मेरी रूह को तो अब मौत की ईमारत से भी डर नहीं लगता ......
गुजरी हुई यादों को अब मैं भुला चूका हूँ ..
सीने के किसी हिस्से में यादों को दफना चूका हूँ .....
अजनबी ही फरिश्ता बनके आ जाते है ....
अपने तो बस वादा करके मुकर जाते है .......
गाडी के कार्बोरेटर, तुझे हुआ क्या है.....
आखिर इस धकाधक धुएं की वजह क्या है.......
ख्यालों के रंगों से रंगी तस्वीर तेरी ......
बेकरारी से मिलन का इंतजार बाकी है .......
मिली तस्वीर इक दिन बाप की जो उस के बेटे को......
तो बोला ’आप भी डैडी कभी क्या खूब लगते थे........
जिसकी एक झलक पाने को बेताब रहती है दुनिया सारी ....
ऐसी सुंदर छवि है मेरे बांके बिहारी लाल की ....
बोलो बांके बिहारी लाल की जय ....जय जय श्री राधे
ये इश्क भी बड़ी धोखे की चीज़ है यारो ....
उससे ही होता है जिसे पाना मुमकिन नहीं .....
मेरी शायरी
जीवन में नहीं है कोई मेरे तरक्की ....
क्योकि जीवन में नहीं है कोई मेरे लड़की ........
तू कहेगी तो तेरे क़दमों में मैं झुक जाऊँगा ....
और अपने दिल कि रानी तुझे बनाऊंगा......
तू कहेगी तो तेरे क़दमों में मैं झुक जाऊँगा ....
लेकिन एक दिन अपने दिल कि दीवानी तुझे बनाऊंगा
मेरी सोच कब कहाँ और किस ओर जायेगी .....
एक न एक दिन वो अपना पता जरूर पाएगी ......
मेरी सोच कब कहाँ और किस कि ओर जायेगी .....
एक न एक दिन वो अपना पता जरूर पाएगी ......
मुझसे हिसाब कोई क्या लेगा ....
जो कुछ भी लेगा वो खुदा लेगा ......
हर सवाल का जवाब नहीं होता.....
औए मेरे दिल का हिसाब नहीं होता .......
अपने होठों से चूम लो गर तुम गुलाब को .......
कांटे भी तरसेगे तेरे हुस्न -ए- शबाब को ........
अपने होठों से चूम लो गर तुम गुलाब को .......
कांटे भी तरसेगे तुम्हारे हुस्न के शबाब को ........
खुद कि पहचान को देखो रूह के आईने में आशीष ......
दुनिया कि नज़रों में तुम्हारी पहचान कुछ भी नहीं ........
खुद कि पहचान को देखो रूह के आईने में ......
दुनिया कि नज़रों में तुम्हारी पहचान कुछ भी नहीं .......
एक सवाल के कई जवाब देता है वो ....
न जाने कितने लोगो को दगा देता है वो .......
एक सवाल के दस जवाब देता है वो ....
न जाने कितने लोगो को दगा देता है वो .......
मुझको नहीं थी खबर कि इन्तेज़ार में है कोई और मेरे
मैं तो तन्हाई को अपना दोस्त समझ बैठा था .......
यूँ तो जिंदगी में रोज लोग आते है जाते है .....
पर आप जैसे दोस्त बहुत कम ही मिल पाते है ........
आपके इश्क ने क्या कमाल कर दिया .....
मेरे तनहा दिल को मालामाल कर दिया ......
Tuesday, November 22, 2011
मेरी शायरी
ये इश्क भी बड़ी धोखे की चीज़ है यारो ....
उससे ही होता है जिसे पाना मुमकिन नहीं .....
दोस्तों ....एक संवाद अभी अभी बनाया है ....
ये अच्छा नहीं किया तुने ओ ज़ालिम मेरे दिल को ठोकर मार के ....
एक बार प्यार से कहती तो अपने दिल को बिछा देता तुम्हारे क़दमों के नीचे
कुछ लोग सिगरेट पीके और शराब पीके बिताते है जिंदगी .....
.क्या बुरा है जो हम फेसबुक के दोस्तों साथ बिताते है जिंदगी ......
माना कि इंसान ने वक्त लूटा दिया दौलत को जोड़ने में ....
कभी सोचा है इंसान ने कि दौलत तो खेल रही थी उसके अरमानो से ......
हम इंसान खुद को क्या ख़ाक कारीगर समझते है ....
पूछना है तो खुदा से पूछो कि कारीगरी किसे कहते है .......
तकदीर की खता नहीं , ये तेरी मोहब्बत का जूनून है.....
जो भीड़ में भी तनहाइयों का आलम कर गया .....
इस पाक और बेबस दिल पर ग़मों की गहरी चोट कर गया.....
कितना अकेला हूँ अब मैं क्या बताऊँ दोस्तों ....
भीड़ में भी तन्हाई मेरे साथ चलती है .........
Monday, November 21, 2011
मेरी शायरी
किसी का भरोसा तोड़ के आखिर कहाँ जाओगे ...
खुद अपनी ही नज़रों में गिरते चले जाओंगे......
खुदा भी ना बक्शेगा तुम्हारी इस बद नीयत को ....
जहन्नुम के दरवाजे से भी महरूम रह जाओगे ......
किसी का विश्वास तोड़ के आखिर कहाँ जाओगे ...
खुद अपनी ही नज़रों में गिरते चले जाओंगे......
हमको तो वो बिछड़े हुए याराने याद आते है ......
तन्हाई के इस दौर मैं वो गुज़रे हुए ज़माने याद आते है ....
आदमी मुसाफिर है आखिर कहाँ तक जाएगा ......
लौट कर वापस अपने घर तक जरूर आएगा ........
देना ही है मुझको तो एक हसीं ख्वाब दे दो ....
हाथों में मेरे एक खिलता हुआ गुलाब दे दो ......
मैं एक शायर अनजाना सा फिरता हूँ मैं बेगाना सा ......
न जाने किसका लिख रहा हूँ मैं एक अफसाना सा .....
मैं एक शायर अनजाना सा फिरता हूँ मैं बेगाना सा ......
जाने न किसका लिख रहा हूँ मैं एक अफसाना सा .....
मेरी शायरी
किसी इंसान का भरोसा करना तो आसान है ....
मगर इंसान की सोच का भरोसा मुमकिन नहीं ......
सरहदों ने बाँट रखा है इस दुनिया को ....
सोच की कभी कोई सरहद नहीं होती .......
इंसान लाख पहरा लगा ले इंसानों पर .....
सोच पर किसी के कोई पहरा लगा सकता नहीं ........
एक पंडित ने मुझसे कहा है की जब तक तुम्हारी जिंदगी में पत्नी के पैर नहीं पड़ेगे तब तक तुम उन्नति नहीं कर पाओगे ....
तुम्हारे क़दमों की आहट सुनता हूँ रोज अपने ख्वाबों में ...
कभी हकीकत में भी दे जाओं अपने क़दमों के निशाँ मेरे आशियाने में....
दोस्तों ,,,
शायरी करना अब तो मेरा जूनून बन गया है ....
दिल के अरमानो का अब तो ये सुकून बन गया है ........
प्यार किया था कभी हमने उसको दिलोजान से ....
आज तक ढूँढ रहे है उसका पता पूरे अरमान से .....
वक्त ना जाने नित्य नए कितने रूप दिखाता है ....
दगा देने वाले अपने को गैर और गैर को अपना बनाता है ....
"ये खामोश मिज़ाजी , तुम्हें जीने नहीं देगी
इस दौर में जीना है , तो कोहराम मचा दो "
हर किसी के पास जिंदगी जीने का पयाम नहीं आता ....
जिंदगी तो वो राज़ है जो शब्दों से ब्यान नहीं होता .......
Sunday, November 20, 2011
मेरी शायरी
हम पहुच गए अपनी मंजिल तक .....
क़दमों के निशां उनके ढूँढ़ते ढूँढ़ते .....
मैं एक फ़कीर सी जिंदगी बसर करने में खुश हूँ ....
मुझे बस अब कुछ नहीं चाहिए तेरे दीदार के बाद.......
रात ने जुल्फें खोल रखी हैं और हवा सहलाती है.
चंदा के दर्पण में तक तक रूप स्वयं शर्माती है.
जिंदगी का नशा इतना बुरा भी नहीं है .....
जो मौत को हम अपनी माशूका बनाये....
मौत भी आकर मेरे पास शरमाकर चली गयी .....
क्योकि जिंदगी का नशा अभी बाकी था मेरी रगों में ......
उनके लिये जमाने भर से घाव अपने दिल पर लेते रहे,
अपने मसले हल होते ही मुंह वह फेर गये
यह भी नहीं पूछा कि
मेरे लिये तुमने कितना दर्द सहा..............
धोखे खाये है हमने हजार जमाने से......
थक गये इंसानों को अब आजमाने से ......
अपने जज्बातों को हमने यूँ दबा रखा है ......
जैसे फर्श पर धुल ने अपना कब्जा जमा रखा है .........
Friday, November 18, 2011
मेरी शायरी
जब दो भाइयों में बंटवारे की ख्वाइश ही न रही ....
तो जिंदगी में झगडे की कोई गुंजाईश ही न रही .........
बहुत तेज नींद का झोका आया
ख्वाबों की दुल्हन साथ में लाया ...
देखो मेरे भाई(सिया) की संगती का क्या असर हो गया ....
मैं ठहरा फ़कीर दिल का अमीर हो गया
मेरे भाई(सिया) ये बता तू क्या चाहता है ....
सुना है की तू किसी का प्यार चाहता है ....
ढूंढ लाना उस हसीं कातिल को इस जहां से
जो तेरे ख्वाबों में आकर तेरी नींदें चाहता हो
इस रात की ख़ामोशी में, तेरी ही यादों का बसेरा हुआ,
आँखों में आस की रौशनी, दिल में दर्द का अँधेरा हुआ,
फिज़ाओ की रंगत बदलने लगी है,
दिशाओ की रंगत बदलने लगी है,
सर्द होने लगी है रातें,
जहाँ कल तक चला करते थे घरों में पंखे,
वहां रजैया तन ने लगी है...
हमसे खता हुई है तेरा दिल दुखाने की ....
अब मेरे दिल की चाहत है तुझसे सजा पाने की ......
हमसे खता हुई है तेरा दिल दुखाने की ....
अब इस दिल की चाहत है तुझसे सजा पाने की ......
मेरी रूह है प्यासी तेरे एक दीदार की ....
अब तक आई ना खबर मेरे दिलदार की ........
दोस्तों मुझे अब लगने लगा है की मैं शायर बन चूका हूँ .......
और बीवी के आने से पहले मैं कायर बन चूका हूँ ........
तू ना आई मेरी जिंदगी में तो कोई बात नहीं ....
तेरी यादें तो है जो रोज आ जाती है मेरे आशियाने में ...........
तू ना आई मेरी जिंदगी में तो कोई बात नहीं ....
तेरी यादें तो है जो रोज आ जाती है मेरे सिरहाने में ...........
मैं हूँ मिस्टर कुंवारा और मिस कुंवारी ढूँढता हूँ .....
फिरता हूँ बनके मिस्टर अनाड़ी और मिस अनाड़ी ढूँढता हूँ ............
मैं हूँ एक कुंवारा और एक कुंवारी ढूँढता हूँ .....
फिरता हूँ गली गली और एक सवारी ढूँढता हूँ .............
बहुत दर्द सहा है मेरे इस दिल ने .....
एक तेरे आने से पहले और एक तेरे जाने के बाद ......
क्यों तोहमत लगाती है ये दुनिया मुझपर .....
मेरा गुनाह सिर्फ इतना था की मैंने मोहब्बत की थी .....
किसी की चाहत का हम यूँ ऐतबार करते है .....
की दिल से उनको हम याद बारबार करते है ..........
जियें खुद के लिये गर हम, मजा तब क्या है जीने में
बहे औरों की खातिर जो, है खुशबू उस पसीने में
है जिनके बाजुओं में दम, वो दरिया पार कर लेंगे
बहुत मुमकिन है डूबें वो, जो बैठे हैं कश्ती में
Sunday, November 13, 2011
मेरी शायरी
दिल में तेरी चाहत को लिए जाने कहाँ अटक जाता हूँ
नादान हूँ अपनी मोहब्बत कि गलियों में भटक जाता हूँ
उनके दीदार की आरजू में हम तड़फते रहे
आज अपना रोता हुआ दामन लेकर सुबकते रहे
आज मुद्दतों बाद कोई याद आ गया ...
और आँखों से अश्कों का सैलाब आ गया ......
तुम्हारी चाहत को हमने अपने दिल में बसा रखा है ....
और जानम हमारे दिल को तुमने छुपा के रखा है.....
खो जाओं न तुम कहीं इस दुनिया कि भीड़ में
इसलिए दिल कि हर धडकन में तुमको बसा रखा है
Wife ke aate hi meri life badal gayi .....
meri life ki har choice badal gayi
subah se lekar raat tak aisa usne toka
ki bhaiya humko lagta aisa ki life ne kar diya humse dhoka
लोग कहते है कि तुम दिल से क्यों सोचते हो ....
हमने कहा यारों फिर तुम दिल पे क्यों लेते हो ........
फेसबुक कि दुनिया भी अजीब है ....
दोस्तों को बनाती दिल के करीब है ....
मैं ने देखा सोते हुए एक महकता हुआ सा ख्वाब .....
नींद से जागा तो देखा हाथ में था मेरे सुर्ख गुलाब .....
एक दिलबर कि तलाश में मैं घर छोड आया ....
जाने कितनी हसीनाओं के मैं दिल तोड़ आया .....
Sunday, April 17, 2011
बेकरार दिल तू क्यूँ है इतना उदास
बेकरार दिल तू क्यूँ है इतना उदास,
वो नहीं आएगा तेरे पास,
तू सम्भल जा अपने आप,
तू मत हो इतना उदास,
उसने किया न था कोई तुम्से करार,
...तू करले मुझपर ऐतबार.
बेकरार दिल तू मत हो इतना उदास,
वो नहीं आएगा तेरे पास.
बेकरार दिल तू क्यूँ है इतना नादान,
तुझे क्यूँ है उसका इंतज़ार,
तू सम्भल जा अब की बार,
उसने नहीं किया था तुझसे कोई इकरार,
फिर क्यूँ है तू इतना बेताब,
तू मान ले मेरी बात,
तू आजा मेरे पास.
बेकरार दिल तू मत हो इतना उदास,
वो नहीं आएगा तेरे पास.
बेकरार दिल तू क्यूँ रोता है उसके लिए दिंन रात,
तुझे पता है वो चाहकर भी नहीं आएगा तेरे पास,
तू करले मुझपर विश्वास,
उसे नहीं है तेरी चाह,
तू समझ ले ये बात,
तू बंजा सहारा अपने आप,
मुझे है तेरा इंतिज़ार,
तू करले मुझसे प्यार.
बेकरार दिल तू मत हो इतना उदास,
वो नहीं आएगा तेरे पास.
MEAN
This is a poem about the word “mean”
Where the hero is “mean”, the villain is also “mean”
But the heroine is the “meaning”, not “mean”.
I hope you may find meaningful, what I may here mean
Sometimes what we say is quite mean,
when we mean to be mean….
But more often we are never mean
and our statements are not meant to be mean,
but others derive meaning & can conclude it as mean.
Very often we say what we do not mean
and are unable to say what we really mean,
People try to then find their own meaning
and presume what we may be meaning
as meaningful, meaningless or mean.
We have no control on their assigning meaning.
Do you call an activity meaningful,
when you search for meaning in everything,
and are not happy with any meaning
which you find nice and meaningful,
unless you are able to find some meaning,
which is hurting & mean and want to regard it
as the most meaningful?
Hope I mean here what I really wanted to mean.
The activity for searching for meaning
which is mean & hurting in everything
is indeed very mean and meaningless.
But people do indulge in such meanness…
Sometimes a comment quite meaningful
is taken by recipient as meaning mean
but very rarely at our site, I mean.
For here we members are all loving & well meaning.
And know that any guest visitor making a mean comment
Reveals and exposes his own envy & meanness
Otherwise he will comment with meaning & not be mean
A dominant boss to impress assistants used to state,
“I always mean what I say, and say what I mean,
Hope you all understand what I mean?”
“Yes, I understand sir, you are always quite mean”
Was the response of a nervous poor assistant,
new to the job, who blurted out what he did not mean.
Pray, I don’t get such a response here to de-mean
To summarize;
We should be always meaningful but never mean.
Make comments which are meaningful and not mean
Should take comments to mean as meaningful and not mean.
And thus be always in love with good meaning.
Kindly go to the starting stanza, Have I conveyed what I did mean….?
Where the hero is “mean”, the villain is also “mean”
But the heroine is the “meaning”, not “mean”.
I hope you may find meaningful, what I may here mean
Sometimes what we say is quite mean,
when we mean to be mean….
But more often we are never mean
and our statements are not meant to be mean,
but others derive meaning & can conclude it as mean.
Very often we say what we do not mean
and are unable to say what we really mean,
People try to then find their own meaning
and presume what we may be meaning
as meaningful, meaningless or mean.
We have no control on their assigning meaning.
Do you call an activity meaningful,
when you search for meaning in everything,
and are not happy with any meaning
which you find nice and meaningful,
unless you are able to find some meaning,
which is hurting & mean and want to regard it
as the most meaningful?
Hope I mean here what I really wanted to mean.
The activity for searching for meaning
which is mean & hurting in everything
is indeed very mean and meaningless.
But people do indulge in such meanness…
Sometimes a comment quite meaningful
is taken by recipient as meaning mean
but very rarely at our site, I mean.
For here we members are all loving & well meaning.
And know that any guest visitor making a mean comment
Reveals and exposes his own envy & meanness
Otherwise he will comment with meaning & not be mean
A dominant boss to impress assistants used to state,
“I always mean what I say, and say what I mean,
Hope you all understand what I mean?”
“Yes, I understand sir, you are always quite mean”
Was the response of a nervous poor assistant,
new to the job, who blurted out what he did not mean.
Pray, I don’t get such a response here to de-mean
To summarize;
We should be always meaningful but never mean.
Make comments which are meaningful and not mean
Should take comments to mean as meaningful and not mean.
And thus be always in love with good meaning.
Kindly go to the starting stanza, Have I conveyed what I did mean….?
Saturday, April 16, 2011
Mahavir Jayanti
स्वामी महावीर : त्याग और अध्यात्म की ज्योति – Mahavir Jayanti
भगवान ने हमें जीवन तो दिया है लेकिन यह उपकार करने के साथ उन्होंने मानव को कई यातनाओं का बोझ भी दिया है जो हमें बार-बार यह याद दिलाता है कि जीवन फूलों की सेज नहीं हैं. लेकिन कभी-कभी मानवीय यातनाएं और परेशानियां इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि जिंदगी बोझ बन जाती है. जिन्दगी की इन्ह...ीं परेशानियों से दूर रहने के लिए ऋषि मुनि भगवान और शांति की खोज में भौतिक जीवन से दूर हो जाते हैं. कुछ जिंदगी भर भौतिक जीवन से परे रह शांति की खोज करते हैं और भगवान को ही अपना सब कुछ बना लेते हैं तो कुछ खुद शांति प्राप्त करने के बाद अन्य लोगों को भी उसी परम शांति की तरफ जाने का संदेश देते हैं.
ऐसे ही एक महान व्यक्ति थे भगवान महावीर (Vardhaman Mahavir) जिन्होंने भौतिक जीवन की तमाम सुविधाएं होने के बाद भी अपने जीवन में त्याग और ध्यान के जरिए परम शांति को महत्व दिया. एक राजा के घर में पैदा होने के बाद भी महावीर जी ने युवाकाल में अपने घर को त्याग कर वन में जाकर भगवान को पाने का रास्ता चुना.
महावीर जी (Vardhaman Mahavir) का जन्म बिहार (Bihar) राज्य के वैशाली (Vaishali) जिले के समीप हुआ था. चौबीस तीर्थंकरों में अंतिम तीर्थंकर महावीर (Vardhaman Mahavir) का जन्मदिवस प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है. उनका जन्म राजा सिद्दार्थ और रानी त्रिशला के घर में हुआ था. महावीर (Vardhaman Mahavir) जब गर्भ में थे तभी कई विद्वानों ने इस बात के संकेत दिए थे कि महावीर राज्य के लिए सुख शांति और वैभव लेकर आएंगे और यह सब बातें महावीर के जन्म के बाद सिद्ध भी हो गईं. वर्धमान महावीर (Vardhaman Mahavir) जैसे जैसे बढ़े उनका ध्यान समाज की परेशानियों और समाज में फैली गरीबी, दुखों के सागर और अन्य चीजों की तरफ ज्यादा खिंचने लगा.
महावीर (Vardhaman Mahavir) जब बडे हुए तो उनका विवाह कलिंग नरेश की कन्या यशोदा किया गया लेकिन 30 वर्ष की उम्र में अपने जेष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया. महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया. महावीर (Vardhaman Mahavir) ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की. आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है. इनके अनेक नाम हैं- अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, महावीर, अतिवीर आदि. इनके ‘जिन’ नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम ‘जैन धर्म’ पड़ा.
महावीर जी (Vardhaman Mahavir) ने जो आचार-संहिता बनाई वह है—
1. किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना,
2. किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना,
3. मिथ्या भाषण न करना,
4. आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना,
5. वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना.
वर्धमान महावीर जी ( Vardhaman Mahavir) ने संसार में बढ़ती हिंसक सोच, अमानवीयता को शांत करने के लिए अहिंसा के उपदेश प्रसारित किए. उनके ज्ञान बेहद सरल भाषा में थे जो आम जनमानष को आसानी से समझ आ जाते थे.
भगवान महावीर ने इस विश्व को एक महान संदेश दिया कि “जियो और जीने दो. ”
मेरे विचार
मेरा मानना है की ज्ञान का दीपक हम सभी के अन्दर है बस जरूरत है उसमे निरंतर तेल डालने की और अग्नि प्रज्वलित करने की जब हम रोजाना अच्छी सोच रखेगे और अच्छे विचार को अभ्यास करते रहेगे तो हमारा मनुष्य जीवन सफल हो जायेगा .प्रभु हम सभी के अंदर हैं बस अपने अन्दर के भगवान् को जानने की कोशिश करिए और उसको खोज्जने का प्रयास करिए
हमे समाज मैं रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ही अपने अन्दर के प्रभु को पाना पड़ेगा .जब हमारे अन्दर का अहम् नष्ट होने लगे हमारे अन्दर प्रेम की मात्रा बड़ने लगे ,मन शांत रहने लगे ,किसी के प्रति ईर्ष्या,द्वेष भाव न हो तब आप समझ लीजिये आपके अन्दर के भगवान् जाग्रत हो चुके हैं .प्रभु से मिलन तो जीते जी हो सकता है बस धैर्य और समय की जरूरत होती है .............
हमे समाज मैं रहते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ही अपने अन्दर के प्रभु को पाना पड़ेगा .जब हमारे अन्दर का अहम् नष्ट होने लगे हमारे अन्दर प्रेम की मात्रा बड़ने लगे ,मन शांत रहने लगे ,किसी के प्रति ईर्ष्या,द्वेष भाव न हो तब आप समझ लीजिये आपके अन्दर के भगवान् जाग्रत हो चुके हैं .प्रभु से मिलन तो जीते जी हो सकता है बस धैर्य और समय की जरूरत होती है .............
Thursday, April 14, 2011
मेरी ग़ज़ल
कभी मस्जिद का तो कभी मंदिर का नाम मांगता है..
कागजी माया के लिए मुल्ला रहीम, पंडित राम मांगता है...
जीवन का हर पल मर के काटती है वो गरीब माँ....
भूक से बिलखता बच्चा रोटी जब सरे आम मांगता है ...
पड़ते है छाले चलते चलते, नौजवान क़दमों मैं..
कैसे हाथ जोड़ बेरोजगार सेठों से काम मांगता है...
कभी नहीं आते अपने गर्दिश मैं साथ देने यहाँ किसीका ...
बिन सोचे हालत-ए-रूह, हर रिश्ता अपना दाम मांगता है...
भीगे कच्ची राह पे तकती है वो सुहागन रास्ता जिसका..
उसका शोहर सरहद पे मिट, आतंक कि शाम मांगता है ...
थक जाता है वो भूडा बाप बेटी कि शादी मैं बिकते बिकते,
बेखौफ खुदा से ससुराल उसका, दहेज़ तमाम मांगता है...
दिल कि लगी को दिल्लगी बना के हंसते है तुमपे आशीष ..
इश्क मैं लुटा आशिक, मयकदे मैं जाम मांगता है..
कहाँ तक देखे कोई जहाँ के गुनाहों को पर्दा डाल,
हमारा दिल ऊब चूका जो बस आपसे सलाम मांगता है...
कागजी माया के लिए मुल्ला रहीम, पंडित राम मांगता है...
जीवन का हर पल मर के काटती है वो गरीब माँ....
भूक से बिलखता बच्चा रोटी जब सरे आम मांगता है ...
पड़ते है छाले चलते चलते, नौजवान क़दमों मैं..
कैसे हाथ जोड़ बेरोजगार सेठों से काम मांगता है...
कभी नहीं आते अपने गर्दिश मैं साथ देने यहाँ किसीका ...
बिन सोचे हालत-ए-रूह, हर रिश्ता अपना दाम मांगता है...
भीगे कच्ची राह पे तकती है वो सुहागन रास्ता जिसका..
उसका शोहर सरहद पे मिट, आतंक कि शाम मांगता है ...
थक जाता है वो भूडा बाप बेटी कि शादी मैं बिकते बिकते,
बेखौफ खुदा से ससुराल उसका, दहेज़ तमाम मांगता है...
दिल कि लगी को दिल्लगी बना के हंसते है तुमपे आशीष ..
इश्क मैं लुटा आशिक, मयकदे मैं जाम मांगता है..
कहाँ तक देखे कोई जहाँ के गुनाहों को पर्दा डाल,
हमारा दिल ऊब चूका जो बस आपसे सलाम मांगता है...
गरीबों के मसीहा-डा. भीम राव अंबेडकर
गरीबों के मसीहा-डा. भीम राव अंबेडकर
गरीबों के दर्द को वही समझ सकता है जिसने गरीबी देखी हो. जो खुद गरीबों के बीच में रहा हो वह ही गरीबों की समस्या को सही ढंग से समझ सकता है. एक इंसान किस तरह एक देश की तकदीर को संवारता है इसका उदाहरण है महापुरुष डा. भीम राव अंबेडकर. भीम राव अंबेडकर जिनका बचपन बेहद गरीबी में बीता, उन्हें छोटी जाति से संबद...्ध होने की वजह से समाज की उपेक्षा का सामना करना पड़ा लेकिन मजबूत इरादों के बल पर उन्होंने देश को एक ऐसा रास्ता दिखाया जिसकी वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है. भीम राव अंबेडकर एक नेता, वकील, गरीबों के मसीहा और देश के बहुत बड़े नेता थे जिन्होंने समाज की बेड़ियां तोड़ कर विकास के लिए कार्य किए.
आज डा. भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) की 120वीं जयंती है. डा. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था. अंबेडकर जी अपने माता-पिता की आखिरी संतान थे. भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे. बचपन में भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) के परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था. भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम रामजी सकपाल था. अंबेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे. भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे.
सेना में होने के कारण भीमराव के पिता ने उनका दाखिला एक सरकारी स्कूल में करा दिया लेकिन यहां भी समाज के भेदभाव ने उनका साथ नहीं छोड़ा. अछूत और छोटी जाति की वजह से उन्हें स्कूल में सभी बच्चों से अलग बैठाया जाता था और पीने के पानी को छूने से मना किया जाता था. लेकिन फिर भी इतनी कठिन परिस्थिति में भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. भाग्य ने हमेशा ही भीमराव अंबेडकर जी की परीक्षा ली. 1894 में भीमराव अंबेडकर जी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद, अंबेडकर की मां की मृत्यु हो गई. बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की. रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए. अपने भाइयों और बहनों मे केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये. अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम “अंबावडे” पर आधारित था.
हाई स्कूल में भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) के अच्छे प्रदर्शन के बाद भी उनके साथ जातिवादी भेदभाव बेहद आम था. 1907 में भीमराव ने मैट्रिक की परीक्षा पास की और बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये. उनकी इस सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी. समाज के सामने भीमराव अंबेडकर जी ने एक आदर्श पेश किया था.
1908 भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया. 1922 में उन्होंने राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गए.
बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन मे अचानक फिर से आए भेदभाव से अंबेडकर उदास हो गए, और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे.
अंबेडकर जी के जीवन में भेदभाव तो बहुत आम था लेकिन साउथबोरोह समिति के समक्ष दलितों की तरफ से अंग्रेजों के सामने उनकी पेशी ने उनके जीवन को बदलकर रख दिया. भारत सरकार अधिनियम 1919 पर चर्चा करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने अंबेडकर जी को बुलाया था. 1925 में अंबेडकर जी को बॉम्बे प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन आयोग में काम करने के लिए नियुक्त किया गया.
कल तक एक अछूत माने जाने वाले अंबेडकर जी कुछ ही समय में देश की एक चर्चित हस्ती बन चुके थे. उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की. अंबेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता मोहनदास गांधी (महात्मा गांधी) की आलोचना की. उन्होंने उन पर अस्पृश्य समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया. अंबेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो. 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है.
ऐसा नहीं था कि महात्मा गांधी अछूतों से भेदभाव करते थे लेकिन गांधी का दर्शन भारत के पारंपरिक ग्रामीण जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक लेकिन रूमानी था और उनका दृष्टिकोण अस्पृश्यों के प्रति भावनात्मक था. उन्होंने उन्हें हरिजन कह कर पुकारा. अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने इस विशेषण को सिरे से अस्वीकार कर दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को गांव छोड़ कर शहर जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.
1936 में अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जिसने 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों में 15 सीटें जीतीं. अंबेडकर जी एक सफल लेखक भी थे जिन्होंने समाज पर वार करती हुई कई पुस्तकें लिखीं जिनमें प्रमुख थीं “थॉट्स ऑन पाकिस्तान”, “वॉट कॉंग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स” थी.
अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया. अंबेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम में अपने सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की. इस कार्य में अंबेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन बहुत काम आया.
अंबेडकर द्वारा तैयार किया गए संविधान पाठ में संवैधानिक गारंटी के साथ व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया. अंबेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस मसौदे मे उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी.
14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया. अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया. 1948 से अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे. जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे. 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी की मृत्यु हो गई.
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