Sunday, April 3, 2011

खुलेपन और आधुनिक विचारधारा का प्रतीक है लोटस टेंपल

बहाई धर्म का संदेश हमारे देश में कई सौ साल पहले ही आ चुका था। लेकिन पच्चीस साल पहले यहां निर्मित हुए बहाई मंदिर ने लोगों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया है। बहाई धर्म में रूढि़यां नहीं हैं। यह किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। इसके मंदिरों में सभी धर्मों के लोग बिना रोक-टोक के आ सकते हैं। बहाई धर्म की इस उदारता को उसके मंदिर की बनावट में भी देखा जा सकता है।

पूरी दुनिया में बहाई धर्म के सात मंदिर हैं और दिल्ली का लोटस टेंपल उनमें सबसे नया है। इसका वास्तुशिल्प बहाई धर्म के आधुनिक सिद्धांतों को साफ तौर से दिखाता है। इसमें खुलापन है। यह हर तरफ से लोगों को आने और अपनी छाया में रहने को आमंत्रित करता है। श्रद्धालु किसी भी धर्म के हो सकते हैं। इसीलिए मंदिर के भीतर कोई मूर्ति या चित्र नहीं हैं।

इस मंदिर के वास्तु के लिए कमल का प्रतीक चुनने के भी कई कारण हैं। कमल के फूल को इस देश के साहित्य, कला और धार्मिक मान्यताओं में ऊंचा स्थान मिला है। वेदों में कमल के फूल का जिक्र है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि से निकलने वाले कमल से हुआ था। देवी लक्ष्मी का दूसरा नाम पद्मा है और कमल उनका आसन है। बौद्ध और जैन धर्म के बहुत से मंदिरों में भी कमल के फूल मिलते हैं। कमल का फूल इस्लामिक वास्तु में भी देखा जाता है। किमरान की मस्जिद के मिहराब में भी कमल के फूल का डिजाइन है।

कहते हैं कि जब सूरज उगता है तो कमल अपनी पंखुडि़यां खोलता है और जब सूरज ढलता है तो वह अपनी पंखुडि़यां बंद कर देता है। इसीलिए पहले यह मान्यता थी कि कमल ही सूर्य का घर है।

बहाई धर्म भारत में अपने सिद्धांतों का प्रसार करने के साथ, भारतीय संस्कृति के प्रति भी अगाध श्रद्धा रखता है। इसीलिए भारत में अपने पूजा स्थल के लिए उसने कमल के फूल के आकार को चुना। इस डिजाइन की मूल सोच यह है कि रोशनी और पानी को उसके दो मूलभूत कारकों के रूप में इस्तेमाल किया जाए। बहाई टेंपल को सजाने के लिए नक्काशी का नहीं, इन्हीं दो चीजों का इस्तेमाल गया है। मंदिर में गुंबद से प्राकृतिक रोशनी आती है और भवन के हर तरफ पानी के छोट-छोटे तालाब बने हैं।

इस मंदिर में पंखुडि़यों के तीन समूह हैं और हर समूह में नौ पंखुडि़यां हैं। मंदिर में प्रवेश के नौ दरवाजे हैं। सबसे ऊपर नौ रेडियल बीम लगी हुई हैं और कांच की छत है , जिससे छन कर हॉल में रोशनी आती है। बहाई धर्म के अनुसार कमल का फूल निर्मलता का प्रतीक है। और मनुष्य को भी इसी की तरह आस - पास की बुराइयों से दूर रहते हुए ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।

इस वास्तुशिल्प को बहाई धर्म के प्रवर्तक बहाउल्लाह के सिद्धांतों के अनुरूप चुना गया है। सन 1817 में फारस में जन्मे बहाउल्लाह के सिद्धांत आधुनिक समाज से जुड़ते हैं। वे किसी भी धर्म का विरोध नहीं करते थे और सभी धर्मों का सम्मान करते थे। वे अपने दौर से कहीं आगे की बातें करते थे। उस दौर में भी उन्होंने स्त्री - पुरुष समानता , सबके लिए शिक्षा और गरीब - अमीर का फर्क मिटाने की बातें कीं।

यही बात बहाई धर्म के प्रार्थना स्थलों में नजर आती है , खास तौर से लोटस टेंपल में। इसमें कमल के फूल की पंखुडि़यां ऐसी पवित्रता का प्रतीक हैं , जो अनेकता में एकता का संदेश देती हैं

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