पार्क से एक बच्ची के जोर-जोर से रोने की आवाज आ रही थी। मुड़ कर देखा तो पता चला कि एक बच्ची साइकल चलाना सीखने में गिर गई थी। यह एक आम बात है, सीखते समय बच्चे गिरते हैं और रोते भी हैं। पर यहां बच्ची जितना रो रही थी, उससे ज्यादा परेशान उसका पिता था। चोट ज्यादा नहीं लगी थी, पर प्यार करते-करते उसे घर ले जाने की हड़बड़ी में वह साइकल भी वहीं छोड़ गया था।
अगले दिन देखना चाहती थी कि बच्ची फिर आती है या नहीं, और वह नहीं आई। एक बार गिर जाने के बाद से बच्ची तो कुछ डरेगी। हालांकि उसके मन में कहीं साइकल पर सवार होने और उसे चलाने की इच्छा भी रहेगी। पर उसे फिर से साइकल पर बैठने की हिम्मत नहीं दी गई, तो वह फिर कोशिश नहीं करेगी। अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार और संरक्षण देने वाले अभिभावकों के लिए यह समझना जरूरी है।
आज बच्चों का पालन-पोषण सहज अनुभव की जगह मनोवैज्ञानिक ढंग से करने के चक्कर में उन्हें गिरने का मौका नहीं दिया जाता है। तभी तो आज उनमें बचपन से ही तकलीफ या तनाव सहने की आदत नहीं होती है। गिरना या हारना स्वीकार नहीं कर पाने के ही कारण वे किसी पराजय के विचार मात्र से आत्मघाती बेवकूफियां कर बैठते हैं।
असफलता समझदार को भी तोड़ देती है। इंसान इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास, सही दिशा-सब खो बैठता है। लेकिन जो इन्हें कसकर पकड़े रहता है, वह हार को जीत में बदलने की सामर्थ्य रखता है। ग्रीक लेखक प्लूटार्क के अनुसार जो हम अंदर से हासिल करते हैं, वह बाहर की असलियत को बदल देता है। अंधेरे-उज़ाले की तरह हार-जीत का दौर भी चलता रहता है, पर न अंधेरा चिरकालीन होता है, न उजाला। घड़ी का बराबर आगे बढ़ना हममें यह आशा भर देता है कि समय कितना भी उलटा क्यों न हो, रुका नहीं रह सकता।
ज्यादा सफलता से व्यक्ति दंभपूर्ण हो सकता है, वैसे ही हारा हुआ व्यक्ति विनम्रता, धैर्य, आशा आदि की शरण में जा सकता है। विवशता में वह अनजाने रास्तांे को टटोलकर कुछ नया करने में समर्थ हो जाता है।
जनरल जॉर्ज पैटन कहते थे कि आदमी की सफलता उसके ऊंचाई तक चढ़ने में नहीं , इसमें है कि नीचे तक गिरने के बाद वह फिर से कितना उछल पाता है। असफलता से हमें वह प्रेरणा मिलती है , जिससे हम अपने लक्ष्य को ढूंढने और उस तक पहुंचने के लिए नए रास्ते खोजते हैं। हममें कुछ करने की कामना जागती है।
असफलता को नकारात्मक मानना भूल है , क्योंकि उसी में सफलता का मूल छिपा है। उसी से बाधाओं से जूझने की शक्ति मिलती है। एंजेला मॉर्गन की एक मशहूर कविता है - जब प्रकृति एक आदमी को चाहती है। उसमें एंजेला ने लिखा है कि जब प्रकृति किसी को चाहती है तो उसे ठोकती है , कष्ट पहुंचाती है , तेज आघातों से उसे बदलती है। जब - जब उसका दिल रोता है , वह अपने विनती भरे हाथ ऊपर उठाता है तो प्रकृति उसे झुका देती है - पर कभी तोड़ती नहीं है। उन हाथों में वह उद्देश्य भर देती है , ताकि वह अपनी श्रेष्ठता को प्रमाणित कर सके। उसे अकेला कर देती है ताकि वह भगवान के संदेश को सुन सके। जब वह अपने फटे , खून से लथपथ पैरों से आगे बढ़ता है तो बेवकूफ कहते हैं कि प्रकृति अंधी है। पर प्रकृति उसमें हार के बावजूद चुनौतियों का मुकाबला करने की शक्ति , प्यार और आशा भरती है। दुर्भाग्य और हार छद्मवेश में वरदान ही हैं।
असफलता प्रकृति की वह योजना है जिससे आदमी के दिल का कूड़ा - करकट जल जाता है और वह शुद्ध हो जाता है। तब वह उसे उड़ने के लिए नए पंख देती है।
अगले दिन देखना चाहती थी कि बच्ची फिर आती है या नहीं, और वह नहीं आई। एक बार गिर जाने के बाद से बच्ची तो कुछ डरेगी। हालांकि उसके मन में कहीं साइकल पर सवार होने और उसे चलाने की इच्छा भी रहेगी। पर उसे फिर से साइकल पर बैठने की हिम्मत नहीं दी गई, तो वह फिर कोशिश नहीं करेगी। अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार और संरक्षण देने वाले अभिभावकों के लिए यह समझना जरूरी है।
आज बच्चों का पालन-पोषण सहज अनुभव की जगह मनोवैज्ञानिक ढंग से करने के चक्कर में उन्हें गिरने का मौका नहीं दिया जाता है। तभी तो आज उनमें बचपन से ही तकलीफ या तनाव सहने की आदत नहीं होती है। गिरना या हारना स्वीकार नहीं कर पाने के ही कारण वे किसी पराजय के विचार मात्र से आत्मघाती बेवकूफियां कर बैठते हैं।
असफलता समझदार को भी तोड़ देती है। इंसान इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास, सही दिशा-सब खो बैठता है। लेकिन जो इन्हें कसकर पकड़े रहता है, वह हार को जीत में बदलने की सामर्थ्य रखता है। ग्रीक लेखक प्लूटार्क के अनुसार जो हम अंदर से हासिल करते हैं, वह बाहर की असलियत को बदल देता है। अंधेरे-उज़ाले की तरह हार-जीत का दौर भी चलता रहता है, पर न अंधेरा चिरकालीन होता है, न उजाला। घड़ी का बराबर आगे बढ़ना हममें यह आशा भर देता है कि समय कितना भी उलटा क्यों न हो, रुका नहीं रह सकता।
ज्यादा सफलता से व्यक्ति दंभपूर्ण हो सकता है, वैसे ही हारा हुआ व्यक्ति विनम्रता, धैर्य, आशा आदि की शरण में जा सकता है। विवशता में वह अनजाने रास्तांे को टटोलकर कुछ नया करने में समर्थ हो जाता है।
जनरल जॉर्ज पैटन कहते थे कि आदमी की सफलता उसके ऊंचाई तक चढ़ने में नहीं , इसमें है कि नीचे तक गिरने के बाद वह फिर से कितना उछल पाता है। असफलता से हमें वह प्रेरणा मिलती है , जिससे हम अपने लक्ष्य को ढूंढने और उस तक पहुंचने के लिए नए रास्ते खोजते हैं। हममें कुछ करने की कामना जागती है।
असफलता को नकारात्मक मानना भूल है , क्योंकि उसी में सफलता का मूल छिपा है। उसी से बाधाओं से जूझने की शक्ति मिलती है। एंजेला मॉर्गन की एक मशहूर कविता है - जब प्रकृति एक आदमी को चाहती है। उसमें एंजेला ने लिखा है कि जब प्रकृति किसी को चाहती है तो उसे ठोकती है , कष्ट पहुंचाती है , तेज आघातों से उसे बदलती है। जब - जब उसका दिल रोता है , वह अपने विनती भरे हाथ ऊपर उठाता है तो प्रकृति उसे झुका देती है - पर कभी तोड़ती नहीं है। उन हाथों में वह उद्देश्य भर देती है , ताकि वह अपनी श्रेष्ठता को प्रमाणित कर सके। उसे अकेला कर देती है ताकि वह भगवान के संदेश को सुन सके। जब वह अपने फटे , खून से लथपथ पैरों से आगे बढ़ता है तो बेवकूफ कहते हैं कि प्रकृति अंधी है। पर प्रकृति उसमें हार के बावजूद चुनौतियों का मुकाबला करने की शक्ति , प्यार और आशा भरती है। दुर्भाग्य और हार छद्मवेश में वरदान ही हैं।
असफलता प्रकृति की वह योजना है जिससे आदमी के दिल का कूड़ा - करकट जल जाता है और वह शुद्ध हो जाता है। तब वह उसे उड़ने के लिए नए पंख देती है।
No comments:
Post a Comment