Monday, April 4, 2011

मेरी शायरी

ज़िन्दगी में आगे बढ जाते हैं जिनके कदम खुद बा खुद ,
मंजिलें अपने आप ही ढून्ढ लेते वो हरदम खुद बा खुद

आशीष टंडन


क्या बताऊँ मैं तुझे किस कदर चाहता हूँ .....
अकेला होता हूँ तो तेरी यादों को चाहता हूँ .........

दीवाना बन चूका हूँ तेरी चाहत में इस कदर ......
अब तो मैं हर जन्म तेरा ही साथ पाना चाहता हूँ .......
आशीष टंडन


दिल तेरा चुराने को जी चाहता है .......
अब तो इश्क फरमाने का जी चाहता है ......

आशीष टंडन


मुक़द्दर को दोष देना मैंने सीखा नहीं......
और सिकंदर बनने की चाह में मैंने पीछे मुड़कर देखा नहीं ...........

आशीष टंडन


तुझे पाने की चाहत में मैं तुमसे दूर हो गया .....
मैं इतना मजबूर क्यों मजबूर हो गया .............
आशीष


हकीकत के आईने में मैंने जब खुद को देखा ...
अपने ही ईमान को मैंने गिरते हुए देखा ......

औरों की क्या मिसाल दूं मैं अब .....
अपने ही ज़मीर को मैंने गिरते हुए देखा ....

आशीष टंडन


मुझे गुमान था चाहा बहुत जमाने ने मुझे
में अज़ीज़ सब को था मगर जरूरत के लिए
आशीष टंडन


मुझे अपनी ज़िन्दगी से बहुत प्यार है .....
तभी तो उस हसीन का इंतज़ार है .............

आशीष 

 



















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