1.जो नीच प्रवृति के लोग दूसरों के दिलों को चोट पहुचाने वाले मर्मभेदी वचन बोलते हैं, दूसरों की बुराई करने में खुश होते हैं। अपने वचनों द्वारा से कभी-कभी अपने ही वाचों द्वारा बिछाए जाल में स्वयं ही घिर जाते हैं और उसी तरह नष्ट हो जाते हैं जिस तरह रेत की टीले के भीतर बांबी समझकर सांप घुस जाता है और फिर दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है।
2.समय के अनुसार विचार न करना अपने लिए विपत्तियों को बुलावा देना है, गुणों पर स्वयं को समर्पित करने वाली संपतियां विचारशील पुरुष का वरण करती हैं। इसे समझते हुए समझदार लोग एवं आर्य पुरुष सोच-विचारकर ही किसी कार्य को करते हैं। मनुष्य को कर्मानुसार फल मिलता है और बद्धि भी कर्म फल से ही प्रेरित होती है। इस विचार के अनुसार विद्वान और सज्जन पुरुष विवेक पूर्णता से ही किसी कार्य को पूर्ण करते हैं।
3.ऐसा धन जो अत्यंत पीडा, धर्म त्यागने और बैरियों के शरण में जाने से मिलता है, वह स्वीकार नहीं करना चाहिए। धर्म, धन, अन्न, गुरू का वचन, औषधि हमेशा संग्रहित रखना चाहिए, जो इनको भलीभांति सहेज कर रखता है वह हेमेशा सुखी रहता है।बिना पढी पुस्तक की विद्या और अपना कमाया धन दूसरों के हाथ में देने से समय पर न विद्या काम आती है न धनं.
4.जो बात बीत गयी उसका सोच नहीं करना चाहिए। समझदार लोग भविष्य की भी चिंता नहीं करते और केवल वर्तमान पर ही विचार करते हैं।हृदय में प्रीति रखने वाले लोगों को ही दुःख झेलने पड़ते हैं। प्रीति सुख का कारण है तो भय का भी। अतएव प्रीति में चालाकी रखने वाले लोग ही सुखी होते हैंजो व्यक्ति आने वाले संकट का सामना करने के लिए पहले से ही तैयारी कर रहे होते हैं वह उसके आने पर तत्काल उसका उपाय खोज लेते हैं। जो यह सोचता है कि भाग्य में लिखा है वही होगा वह जल्द खत्म हो जाता है। मन को विषय में लगाना बंधन है और विषयों से मन को हटाना मुक्ति है.
5.आलस्य मनुष्य के स्वभाव का बहुत बड़ा दुर्गुण है। आलस्य के कारण प्राप्त की गयी विद्या भी नष्ट हो जाती है दुसरे के हाथ में गया धन कभी वापस नहीं आता।बीज अच्छा न हो तो फसल भी अच्छी नहीं होती और थोडा बीज डालने से भी खेत उजड़ जाते हैंसेनापति कुशल न हो तो सेना भी नष्ट हो जाती है। शील के संरक्षण में कुल का नाम उज्जवल होता है।
6.बुरे राजा के राज में भला जनता कैसे सुखी रह सकती है। बुरे मित्र से भला क्या सुख मिल सकता है। वह और भी गले की फांसी सिद्ध हो सकता है। बुरी स्त्री से भला घर में सुख शांति और प्रेम का भाव कैसे हो सकता है। बुरे शिष्य को गुरू लाख पढाये पर ऐसे शिष्य पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ सकता है।
2.समय के अनुसार विचार न करना अपने लिए विपत्तियों को बुलावा देना है, गुणों पर स्वयं को समर्पित करने वाली संपतियां विचारशील पुरुष का वरण करती हैं। इसे समझते हुए समझदार लोग एवं आर्य पुरुष सोच-विचारकर ही किसी कार्य को करते हैं। मनुष्य को कर्मानुसार फल मिलता है और बद्धि भी कर्म फल से ही प्रेरित होती है। इस विचार के अनुसार विद्वान और सज्जन पुरुष विवेक पूर्णता से ही किसी कार्य को पूर्ण करते हैं।
3.ऐसा धन जो अत्यंत पीडा, धर्म त्यागने और बैरियों के शरण में जाने से मिलता है, वह स्वीकार नहीं करना चाहिए। धर्म, धन, अन्न, गुरू का वचन, औषधि हमेशा संग्रहित रखना चाहिए, जो इनको भलीभांति सहेज कर रखता है वह हेमेशा सुखी रहता है।बिना पढी पुस्तक की विद्या और अपना कमाया धन दूसरों के हाथ में देने से समय पर न विद्या काम आती है न धनं.
4.जो बात बीत गयी उसका सोच नहीं करना चाहिए। समझदार लोग भविष्य की भी चिंता नहीं करते और केवल वर्तमान पर ही विचार करते हैं।हृदय में प्रीति रखने वाले लोगों को ही दुःख झेलने पड़ते हैं। प्रीति सुख का कारण है तो भय का भी। अतएव प्रीति में चालाकी रखने वाले लोग ही सुखी होते हैंजो व्यक्ति आने वाले संकट का सामना करने के लिए पहले से ही तैयारी कर रहे होते हैं वह उसके आने पर तत्काल उसका उपाय खोज लेते हैं। जो यह सोचता है कि भाग्य में लिखा है वही होगा वह जल्द खत्म हो जाता है। मन को विषय में लगाना बंधन है और विषयों से मन को हटाना मुक्ति है.
5.आलस्य मनुष्य के स्वभाव का बहुत बड़ा दुर्गुण है। आलस्य के कारण प्राप्त की गयी विद्या भी नष्ट हो जाती है दुसरे के हाथ में गया धन कभी वापस नहीं आता।बीज अच्छा न हो तो फसल भी अच्छी नहीं होती और थोडा बीज डालने से भी खेत उजड़ जाते हैंसेनापति कुशल न हो तो सेना भी नष्ट हो जाती है। शील के संरक्षण में कुल का नाम उज्जवल होता है।
6.बुरे राजा के राज में भला जनता कैसे सुखी रह सकती है। बुरे मित्र से भला क्या सुख मिल सकता है। वह और भी गले की फांसी सिद्ध हो सकता है। बुरी स्त्री से भला घर में सुख शांति और प्रेम का भाव कैसे हो सकता है। बुरे शिष्य को गुरू लाख पढाये पर ऐसे शिष्य पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ सकता है।
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