Wednesday, April 6, 2011

कबीर अमृतवाणी

जौन चाल संसार के जौ साधू को नाहिं
डिंभ चाल करनी करे, साधू कहो मत ताहिं

संत शिरोमणि कबीरदास जीं कहते हैं कि जो आचरण संसार का वह साधू का हो नहीं सकता। जो अपने आचरण और करनी का दंभ रखता है उसको साधू मत कहो।
सोई आवै भाव ले, कोइ अभाव लै आव
साधू दौऊँ को पोषते, भाव न गिनै अभाव

कोई भाव लेकर आता है और कोई अभाव लेकर आता है। साधू दोनों का पोषण करते हैं, वह न किसी के प्रेम पर आसक्त होते हैं और न किसी के अभाव देखकर उससे विरक्ति दिखाते हैं।
‘कबीर’ सो धन संचिये, जो आगै कू होइ
सीस चढाये पोटली, ले जात न देख्या कोइ

उसी धन का संचय करो, जो आगे काम आए, तुम्हारे इस धन में क्या रखा है। गठरी सिर पर रखकर किसी को भी आज तक ले जाते नहीं देखा।

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